मोबाइल से पढाई का संकट झेल रहे मातापिता ,बच्चों के भविष्य पर लाकडाउन सबसे बडी समस्या बना
कोविड 19 के प्रकोप के चलते पिछले वर्ष मार्च माह से बच्चों को जुलाई 2020 के बाद जुलाई 2021 में भी स्कूलों में जाने पढने व खेलने से दूर ही रहना पड रहा है।बच्चों के साथ अभिभावकों की भी परेशानी बनी हुई है कि आखिर में बच्चों को कब तक घर पर बंद कर रखा जाय।कोरोना महामारी के चलते प्राथमिक स्कूलों के बच्चों को पिछले साल कोरोना की पहली लहर के चलते पढाई करने के बाद बिना परीक्षा के ही प्रोन्नत करने का फरमान जारी कर दिया गया था।मार्च 2021 में स्कूल खुलने का जैसे ही फरमान हुआ तो दूसरी लहर के कारण फिर से एक से आठ तक नौ से बारहवीं तक के बच्चों को अनिश्चितकालीन अवकाश देकर घरों में ही रहकर पढाई कराने का निर्देश दिया गया। जिससे कुछ बच्चों को केवल आनलाइन पढाई का अवसर मिल पाया।एक सरकारी रिकार्ड के अनुसार केवल 23 प्रतिशत ही बच्चों को आनलाइन शिक्षा मिल पाती है जिसमें शहरों के अलावा गांवों में नेटवर्क की समस्या बहुत रहने से पढाई की दशा दयनीय ही बनी रही।अभिभावकों की नजर में आनलाइन शिक्षा केवल शहरो में ही सम्भव है जहां साधन सम्पन्न घरों के बच्चों को मोबाइल व लैपटाप मिल पाते हैं। गांवों मेे तो अपने भोजन की व्यवस्था करें कि मोबाइल से पढाई कराएं।दो या चार बच्चों में एक मोबाइल से पढाई का संकट झेल रहे मातापिता बच्चों के भविष्य पर लाकडाउन सबसे बडी समस्या बना हुआ है।बहरहाल पिछले साल तो किसी तरह बच्चों को घरों में रखकर पढाई की खाना पूर्ति की गयी लेकिन इस बार तो प्रोन्नत हुए बच्चों के पास किताब कापियां नहीं है भला कैसे हो पढाई।सभी को पता है कि मार्च में बन्दी के बाद जुलाई लगने पर बच्चे नए कापी किताबे लेकर स्कूल में दाखिल होते है तब पढाई हो पाती है लेकिन जब बच्चों को दो सालों से दर्जा बढा दिया जाता है तो भला कापी किताब की जरूरत ही क्या है।बहरहाल सुने स्कूल बच्चों के बिना वीरान होकर रह गये है।तीसरी लहर का संकेत बच्चों को अपने घरों में रहने को मजबूर कर रहा है। आनलाइन पढाई सिर्फ रामभरोसे ही नौनिहालों के भविष्य को संवारने को तैयार है।
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